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नशे के विरुद्ध जन-अभियान

नशे के विरुद्ध जन-अभियान

भारत डोगरा
हाल के समय में सामाजिक समस्याओं में वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि विभिन्न तरह के नशों में वृद्धि हो रही है। शराब और गुटखे में वृद्धि बहुत तेजी से हुई है। अनेक तरह के ड्रग्स का चलन भी तेजी से बढ़ा है।

विभिन्न तरह के नशे क्यों बढ़े हैं, इस पर अनेक तरह के विचार मिलते हैं पर एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि शराब के विरुद्ध जो एक बड़ा माहौल हमारे समाज में था, इसमें बहुत गिरावट आई है। चाहे शराब का उपयोग कितने भी समय से हो रहा हो, पर कुछ दशक पहले तक इसे बहुत बुरा माना जाता था और नैतिक स्तर पर यह मान्यता बहुत मजबूत थी। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी इस नैतिक सोच को प्राप्त किया जाता था। पर धीरे-धीरे शराब के विरुद्ध इस सामाजिक मान्यता में कमी आने लगी और फिर बाद में तो यह प्रवृत्ति बहुत तेज हो गई। यह केवल समाज और अर्थव्यवस्था में आ रहे बदलावों के कारण नहीं हुआ अपितु योजनाबद्ध ढंग से भी इस माहौल को बदला गया।

एक मिथक जो दुनिया भर में फैलाई गई कि कम मात्रा में शराब पीने से नुकसान नहीं है, जबकि वैज्ञानिकों का स्पष्ट मत है कि कम मात्रा में शराब पीने से भी कुछ हानि अवश्य होती है। फिर एक मिथक यह फैलाई गई कि वाईन या रेड वाईन से क्षति नहीं होती है। इस मिथक के फैलने से कितने ही लोगों ने नियमित रेड वाईन पीना आरंभ कर दिया जबकि बाद में स्पष्ट हो गया कि इस कारण उन्होंने अनेक गंभीर समस्याओं को आमंत्रित किया है। इसी तरह कभी सिगरेट तो कभी बीड़ी, सभी तंबाकू के विभिन्न रूपों तथा सभी गुटखे के दुष्परिणामों को कम करके बताया गया। एक अन्य मिथक फैलाया गया कि शराब की लत लग जाने पर इसे छोडऩा लगभग असंभव है जबकि आंकड़े बताते हैं कि प्रति वर्ष लाखों लोग मजबूत इच्छाशक्ति के बल पर भी शराब छोड़ते हैं। यदि समाज में एक निरंतरता से अभियान नशे के विरुद्ध चलाया जाए तो यह संभावना और बढ़ जाएगी।

तरह-तरह के नशे करोड़ों लोगों का जीवन क्षतिग्रस्त कर रहे हैं। सभी तरह के नशे के विरुद्ध समग्र अभियान की जरूरत है। वैसे तो सभी तरह के नशे बुरे हैं, पर सब से अधिक बरबादी शराब से हो रही है। इस बारे में विश्व स्तर के आंकड़े डराने वाले हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की शराब और स्वास्थ्य स्टेटस रिपोर्ट (2018) के अनुसार विश्व में 2016 में शराब से 30 लाख मौतें हुई। 2016 में शराब के कारण हुई मौतों में से 28.7 प्रतिशत चोटों के कारण हुई, 21.3 प्रतिशत पाचन रोगों के कारण हुई, 19 प्रतिशत हृदय रोगों के कारण हुई, 12.9 प्रतिशत संक्रामक रोगों से हुई और 12.6 प्रतिशत कैंसर से हुई। 20 से 29 आयु वर्ग में होने वाली मौतों में से 13.5 प्रतिशत शराब के कारण होती हैं।

सडक़ दुर्घटनाओं में शराब के कारण 2016 में 37०० मौतें हुई। इनमें से 187000 ऐसे व्यक्ति थे जो स्वयं गाड़ी नहीं चला रहे थे। शराब के कारण इस वर्ष 15०० आत्महत्याएं हुई और 9०० मौतें आपसी हिंसा में हुई। कम समय में अधिक पी लेने से कोमा में आने और मृत्यु तक का परिणाम हो सकता है। इस रिपोर्ट ने यह भी बताया है कि 200 तरह की बीमारियों और चोटों में शराब का हानिकारक उपयोग एक बड़ा कारण है। लिवर सिरहोसिस और अनेक तरह के कैंसर में शराब महत्त्वपूर्ण कारण है। पहले अधिक शराब पीने को ही मस्तिष्क की क्षति, याद रखने की क्षमता पर प्रतिकूल असर और डिमेनशिया से जोड़ा जाता था पर अब ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के नये अनुसंधान (ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित) से पता चलता है कि अपेक्षाकृत कम शराब पीने से भी मस्तिष्क की ऐसी क्षति होती है।
यह तो सब जानते हैं कि शराब स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है, पर शराब उद्योग यह मिथक फैलाने के लिए प्रयासरत रहा है कि थोड़ी सी शराब पीने से नुकसान नहीं होता। यह केवल मिथक ही है। सच्चाई हाल के अध्ययन में सामने आई है जो प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट’ में प्रकाशित हुआ। लगभग 500 विशेषज्ञों के समूह के मुख्य लेखक मैक्स ग्रिसवोल्ड ने इस अध्ययन के निष्कर्ष के बारे में बताया है, एल्कोहल की कोई ऐसी सुरक्षित मात्रा नहीं है (न्यूनतम मात्रा से भी नुकसान होता है)।

आगे जैसे-जैसे एल्कोहल का प्रति दिन का उपयोग बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे स्वास्थ्य के खतरे भी बढ़ते जाते हैं। नशीली दवाओं, एल्कोहल और एडिक्टिव बिहेवियर के विकोष के अनुसार मौत होने वाली सडक़ दुर्घटनाओं में से 44 प्रतिशत में एल्कोहल की भूमिका पाई गई है। दुर्घटना में मरने वाले 50 प्रतिशत तक मोटरसाइकिल चालकों के शराब के नशे में होने की संभावना पाई गई है। इस विकोष के अनुसार घर में होने वाली दुर्घटनाओं में 23 से 30 प्रतिशत में एल्कोहल की भूमिका होती है। आग लगने और जलने से मौत होने की 46 प्रतिशत दुर्घटनाओं में एल्कोहल की भूमिका होती है। यदि शराब न पिए हुए व्यक्ति से तुलना करें तो शराब पीने के बाद किसी व्यक्ति में आत्महत्या का खतरा सात गुणा बढ़ जाता है और अधिक मात्रा में शराब पीने के बाद यह खतरा 37 गुणा बढ़ जाता है (बोज्रे का अध्ययन, 2017)। एल्कोहल उपयोग डिसऑर्डर के कारण अवसाद की संभावना कम से कम दोगुना बढ़ जाती है। कुछ वर्ष पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक रिपोर्ट तैयार करवाई थी जिसे हिंसा और स्वास्थ्य पर विश्व रिपोर्ट का शीषर्क दिया गया था।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि डिप्रेशन या अवसाद के लिए भी एल्कोहल एक महत्त्वपूर्ण कारक है। रिपोर्ट के अनुसार एल्कोहल और नशीली दवाओं के दुरुपयोग की आत्महत्या में भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अमेरिका में चार में से कम से कम एक आत्महत्या में एल्कोहल की भूमिका रिपोर्ट की गई है। विभिन्न देशों में होने वाले अध्ययनों में यह महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आया है कि 50 प्रतिशत से अधिक यौन हिंसा और हमलों में शराब और नशीली दवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

विशेषकर युवाओं की हिंसा के संदर्भ में रिपोर्ट ने कहा है कि हिंसा होने में या उसकी संभावना बढ़ाने में शराब की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। युवा हिंसा पर स्वीडन के एक अध्ययन ने बताया कि हिंसा करने वाले लगभग 75 प्रतिशत व्यक्ति और हिंसा की मार सहने वाले लगभग 50 प्रतिशत व्यक्ति हिंसा की घटनाओं के समय नशे में पाए गए। रिपोर्ट ने कहा है कि किसी समुदाय में अपराध और हिंसा कम करने की रणनीति में शराब की उपलब्धि कम करने की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। अनेक क्षेत्रों का अनुभव रहा है कि शराब के नशे के विरुद्ध जन-अभियान चलाने से इसके उपभोग में उल्लेखनीय कमी लाना निश्चित तौर पर संभव है। यह ऐसा क्षेत्र है जो सरकारों और जन-संगठनों विशेषकर महिलाओं और युवा संगठनों के सहयोग से सार्थक परिणाम प्राप्त कर सकता है।

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