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वॉर्मिंग में इतनी ठंड

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जब कभी असामान्य ठंड पड़ती है, तो लोग इस सवाल पर बात करने लगते हैं कि आखिर जब चर्चा ग्लोबल वॉर्मिंग यानी धरती का तापमान बढऩे की है, तो उस समय इतनी ठंड क्यों पड़ रही है। जबकि इसमें हैरत की कोई बात नहीं है। उत्तर-मध्य भारत में इस बार ठंड देर से पड़ी, लेकिन खूब जोरदार पड़ी है। ये दोनों स्थितियां असामान्य हैं। उसी समय जम्मू-कश्मीर में लोग बर्फबारी के तरस कर रह गए हैं। यह भी एक असामान्य स्थिति है। ऐसे असामान्य हालात का अक्सर दुनिया को सामना करना पड़ रहा है। बहरहाल, जब कभी किसी क्षेत्र में असामान्य ठंड पड़ती है, तो लोग इस सवाल पर बात करने लगते हैं कि आखिर जब चर्चा ग्लोबल वॉर्मिंग यानी धरती का तापमान बढऩे की है, तो उस समय इतनी ठंड क्यों पड़ रही है। जबकि इसमें हैरत की कोई बात नहीं है। ऐसा होना भी असल में जलवायु परिवर्तन का ही एक हिस्सा है। यह तो आम जानकारी है कि जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वॉर्मिंग का परिणाम है। वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (डब्लूडब्लूए) का एक ताजा विश्लेषण इस सवाल को समझने के लिए लिहाज से महत्त्वपूर्ण है।

डब्लूडब्लूए वैज्ञानिक संगठनों का एक समूह है। उसने 2023 में आई एक दर्जन से ज्यादा आपदाओं का विश्लेषण किया। उसकी रिपोर्ट में वैज्ञानिक साक्ष्य की मदद से बताया गया है कि जीवाश्म ईंधन से होने वाला उत्सर्जन किस तरह से तूफान, सूखा, जंगल की आग और गर्म लहरों को विनाशकारी बना रहा है। 2023 में जीवाश्म ईंधन से होने वाला उत्सर्जन चरम पर था। इसका परिणाम असाधारण बारिश और सामान्य से ज्यादा ठंड के रूप में भी सामने आया है। मतलब यह कि ग्लोबल वॉर्मिंग से जलवायु बदल रहा है। इस कारण बेमौसमी घटनाएं आम होती जा रही हैं। इससे यह अनुमान लगाना कठिन हो गया है कि कब बारिश होगी, कब ठंड पड़ेगी और कब गरमी का सामना करना होगा। ये बेमौसमी घटनाएं असाधारण रूप से मारक और तीव्र होने लगी हैं। फिर भी दुनिया सबक नहीं ले रही है। दुनिया में कार्बन उत्सर्जन की मौजूदा स्थिति के हिसाब से संयुक्त राष्ट्र ने हाल में एक रिपोर्ट जारी की। उससे पता चला है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से वर्ष 2100 तक वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में 2.9 डिग्री सेल्सियस तक बढऩे की आशंका है। जबकि वैज्ञानिक पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि 1.5 डिग्री से ज्यादा तापमान बढऩा खतरनाक है।

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